Wednesday, November 02, 2005

प्रकृति

कह देते हो मीठी थकान
जब धीमी-धीमी बोली में
जैसे कलियाँ चुपचाप, ओस को
बिठा रही हो ओली में।


मदमस्त पवन अपनी धुन में
झकझोर डालता कलियों को
बेसुध कर जाता वन-कानन
सुरभित कर जाता गलियों को

जीवन-सरिता के कूल सदा
स्वागत हित बाहें फैलाए
मन की धड़कन को लहर लहर में
चले जा रहे हैं गाए

सबके अपने आनंद, प्रकृति के
अर्थ अलग पहचाने हैं
चल रहे पराये पांवों पर
ये मार्ग बहुत अनजाने है।
***



-संतोष व्यास

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