Wednesday, November 02, 2005

ना हुआ प्यार भी हमसे सलीके से

लोग कर लेते हैं हर को तरीके से
ना हुआ प्यार भी हमसे सलीके से।

हर पत्थर को चुन चुन करके हमने राह बनाई
जाने क्यूँ चलने पर उभरा दर्द आँख भर आई
मन और कर्म का संघर्ष कुछ बढ़ा ऐसा
हो गए तार-तार पात हम कदली के से
ना हुआ प्यार भी हमसे सलीके से।

हुई कुछ जिन्दगी ऐसी सहम कर बात करते हैं
जान कर भी उलझते हैं, वहम की बात करते हैं
उलझना या वहम करना इसी में जिन्दगी बीती
सच कहूँ, वहम भी हमसे न हुआ सलीके से
ना हुआ प्यार भी हमसे सलीके से।
***

-सन्तोष व्यास

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